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Health Questions


    गर्भावस्था के दौरान, कभी कभी कुछ महिलाओ में रक्त के धब्बे या फिर रक्त श्रवित (ब्लीडिंग) होता है। परंतु रक्तस्राव (ब्लीडिंग) एवं खून के धब्बों (स्पॉटिंग) में अंतर होता है। जब योनि से हल्के रक्त का स्राव होता है तो उसको स्पॉटिंग या खून के धब्बे आना कहते है। ये उसी प्रकार के खून के धब्बों की तरह होता है जो महावारी (पीरियड्स) के शुरुवात एवं अंत में होता है। इसका रंग भूरा, हल्का भूरा या लाल हो सकता है तथा इसका प्रवाह कम होता है। वही दूसरी ओर रक्तस्राव में खून की मात्रा अधिक होती है और इस दौरान आपको सैनिटरी पैड की आवश्कता पड़ सकती है। _गर्भावस्था में ब्लीडिंग होने के सामान्य कारण_ गर्भावस्था के दौरान निम्न परिस्थितियों में खून के धब्बे या रक्तस्रावहो सकता है – - गर्भावस्था के शुरुआती दौर में हल्की फुल्की ब्लीडिंग होना सामान्य है और यह लगभग चार में से एक महिला में होती हैं। इसका कारण होता है इंप्लांटेशन। जब भ्रुण बढ़ता है तो वह कोख की दीवार में प्रत्यारोपित ( ट्रांसप्लांट) होता है, यही इंप्लांटेशन कहलाता है। - स्पॉटिंग, बढ़ते हुए प्लेसेंटा ( अपरा) के कारण भी हो सकती है। 6 सप्ताह के गर्भधारण के पश्चात अपरा खुद ही गर्भावस्था के हार्मोन का निर्माण करने लगती है, जिसके कारण हल्का रक्तस्राव हो सकता है। - यदि आपने किसी प्रजनन उपचार कैसे आई वि इफ के जरिए गर्भधारण किया है तो आपको हल्के खून के धब्बे दिख सकते हैं। - इन कारणों के अतरिक्त गर्भावस्था के दौरान शरीर में कई अन्य प्रकार के बदलाव आते हैं जिसके कारण स्पॉटिंग हो सकती है। जैसे - योनि या गर्भाशय ग्रीवा में इन्फेक्शन होना, सर्वाइकल पोलिप, यूटराइन फाइब्रॉयड ( गर्भाशय के अंदर बनने वाले मांसपेशियों का ट्यूमर), गर्भावस्था के हार्मोन से ग्रीवा की सतह में बदलाव होने से जलन और असहजता के कारण रक्तस्राव हो सकता है। _कब प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग होना हानिकारक है?_ उपर्युक्त समान्य कारणों के अतिरिक्त इन परिस्थितियों में रक्त स्राव हो सकता है जो की आपके स्वास्थ के लिए हानिकारक हो सकता है। कुछ कारण निम्न हैं – - गर्भपात – कभी कभी गर्भावस्था की शुरुवात में भ्रुण का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता, जिससे दुभाग्यवश गर्भपात हो जाता है। - एक्टोपिक प्रेगनेंसी ( अस्थानिक गर्भावस्था) – इस अवस्था में निषेतचित ( फर्टिलाइज्ड)डिंब गर्भाशय के अतिरिक्त आस पास अन्य जगह जैसे फैलोपियन ट्यूब में प्रत्यारोपित हो जाता है। ऐसे में रक्तस्राव होने लगता है। - मोलर गर्भावस्था – इसमें भी रक्तस्राव हो सकता है। इसमें गलत गुणसूत्रों ( क्रोमोसोम्स) के मिलने की वजह से भ्रुण का विकास नहीं हो पाता है। - वेनिशिंग ट्विन – कभी कभी जुड़वा बच्चे होने पर भी स्पोर्टिंग हो सकती है। ऐसा अक्सर तब होता है जब एक शिशु का विकास रुक जाता हैं और अंत में वह पूरी तरह गायब हो जाता है, इसको वेनिशिंग ट्विन कहते है। - कभी कभी जब प्रसव समय से पहले होने लगता है तब भी ब्लीडिंग हो सकती है। - इसके अतिरिक्त पेट पर आघात लगने से भी रक्त स्राव हो सकता है। सभी स्तिथियों में आपको एक बार स्त्री प्रसूति रोग विषेशज्ञ से अवश्य परामर्श लेना चाहिए। चिकत्सक देख समझ कर एवं जांचें करा कर आपको सही सलाह देते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको लापरवाही बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए और खुद से अपना इलाज या घरुलू नुस्खे कदापि नहीं अपनाने चाहिए।
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    आजकल अधिकतर घरों में कोई न कोई पालतू जानवर होता है। किसी के पास बिल्ली, किसी के पास कछुआ तो किसी के पास कुत्ता पाला होता है। ये जानवर बेशक बहुत ही प्यारे होते है परन्तु इनसे बीमारियां होने का भी खतरा होता है। ऐसा अक्सर सुनने में आता है की सड़क पर चलते समय किसी कुत्ते ने काट लिया या खरोच मार दी। या फिर बंदर ने हमला कर दिया। दुनिया भर में कुत्ते से काटे जाने के लगभग 45 लाख केस हर साल आते हैं। इन जानवरों के काटने को आपको समान्य नहीं समझना चाहीए बल्कि इसका तुरंत उपचार करना चाहिए। यदि तुरंत प्राथमिक उपचार न किया जाए तो आप संक्रमित हो सकतें है और आपको रेबीज़ जैसी बीमारी या कुछ अन्य बीमारियां भी हो सकती है। हर साल रेबीज़ के कारण भारत में 18000 से ऊपर मृत्यु होती हैं। _**कुत्ते के काटने से क्या होता है?**_ यदि आपको कुत्ते ने काटा है या खरोच मारी है तो आपको असहनीय पीड़ा होने के साथ साथ कई कठिनाइयां हो सकती हैं। कुत्ते की लार में एक बैक्टेरिया पाता जाता है और यदि वो काट लेता है तो सही इलाज न करने पर वो बैक्टेरिया आपके शरीर में भी पहुंच कर संक्रमित कर सकता है। इसके इलावा आपके शरीर में कुछ अन्य लक्षण भी दिखाई दे सकते है। ये लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कुत्ते ने कितनी गहराई से कटा हैं। _**रेबीज़ क्या हैं? क्या हर कुत्ते के काटने से रेबीज़ हो सकती है?**_ रेबीज़ एक ऐसा रोग है जिसका कारण वायरस होते हैं। इस रोग का प्रभाव केंद्रीय तंत्रिका पर होता है एवं इसकी चिकित्सा ना करने पर जान भी जा सकती है। यदि आप ये सोच रहे है की हर कुत्ते के काटने से रेबीज़ हो सकती है, तो आप गलत हैं। रेबीज़ केवल उन कुत्तों के काटने से ही होती है जिनको रेबीज़ है या फिर उनको रेबीज़ का टीका नहीं लगा है। कुत्ते के काटने पर तुरंत इलाज करवाने का कारण यही है की आप हमेशा ये नही जान सकते की किस कुत्ते को रेबीज़ का टीका लगा है अथवा किसको नही। _**कुत्ते के काटने पर क्या प्राथमिक उपचार करें?**_ यदि आपको या आपके किसी भी जाने वाले को कुत्ते ने काटा है तो प्राथमिक उपचार के लिए आप निम्नलिखित चीज़े कर सकते हैं - - घाव को डिटोल से पोंछे और साबुन लगा कर चलते पानी में 5-1० मिनट तक धोये। - शरीर का जो हिस्सा प्रभावित है उसे थोड़ा ऊपर उठा कर रखें। - यदि कोई एंटीबायोटिक क्रीम है तो उसको घाव पर लगा दे। - घाव की बैंडेज करे और डॉक्टर से परामर्श करें। सभी कुत्ते के काटने के घाव, यहां तक कि मामूली भी, संक्रमण के लक्षणों के लिए निगरानी की जानी चाहिए जब तक कि वे पूरी तरह से ठीक न हो जाएं। _**कुत्ते के काटने से क्या जटिलताएं हो सकती हैं?**_ अक्सर कुत्ते बहुत गंभीर रूप से नहीं काटते हैं और अधिकतर इसका शिकार बच्चे होते हैं। कुत्ते के काटने पर कुछ संक्रमण या जटिलताएं हो सकती हैं। जैसे - यदि किसी कुत्ते ने आपको काटा है और आपका मांस निकल गया या उस कुत्ते के दांत आपको ज्यादा गहराई में लग गए है, तो संभव है की आपकी त्वचा पर उसके निशान छूट जाए। - रेबीज़ - जो प्रभावित क्षेत्र होता है वहा आस पास सूजन आ सकती है। ऐसे में बुखार आना, ह्रदय गति तेज होना आदि लक्षण दिखते है। अक्सर ये सूजन एंटीबॉयटिक्स से सही हो जाती है। किंतु यदि संक्रमण फैलता है तो सेप्सिस होने का खतरा होता है। - मेनिनजाइटिस _**रेबीज के लक्षण**_ यह रोग शुरुवात में फ्लू जैसे लक्षण प्रकट करता है। बुखार, झुनझुनी, मांसपेशियों में कमजोरी आदि। रेबीज़ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और यह दो प्रकार के रोग विकसित कर सकता है। <u>उग्र रेबीज़</u> इसमें ये लक्षण दिखते हैं - - व्याकुलता और अशांति - अनिद्रा - चिंता - उलझन - लार का अधिक मात्रा में गिरना - पानी से डर लगना - निगलने में कठिनाई होना <u>पैरालिटिक रेबीज़</u> इसको होने में थोड़ा समय लगता है, परंतु यह भी उतना ही गंभीर होता है। धीमे धीमे संक्रमित व्यक्ति पैरालाइज हो जाता है और वह कोमा में भी जा सकता हैं। इस स्थिति में उसकी मृत्यु भी संभव है। _**कुत्ते के काटने के बाद कब और कितने इंजेक्शन लगवाए?**_ रेबीज़ से बचने के लिए इंजेक्शन दो प्रकार से लगते हैं। कुछ लोग सावधानी के तौर पर ही टिका लगवा लेते हैं जिससे वो कुत्तों के काटने से होने वाली बीमारी से बच सकें। इसको प्री एक्सपोजर वैक्सीनेशन कहा जाता है। डॉक्टर के अनुसार यह टीका उन लोगो को अवश्य लगवाना चाहिए जिनके घर में कुत्ते पले हों या फिर वो कुत्ता रखनेवाले हो। अगर आप ऐसी जगह जा रहे हो जहां रेबीज़ के केस अधिक हो या बहुत सारे आवारा कुत्ते हों, तब भी आपको प्री एक्सपोजर वैक्सीनेशन कराना चाहिए । यह टीकाकरण उन लोगों के लिए है जिनको उस कुत्ते ने काटा है जिसके रेबीज़ का इंजेक्शन लगा हुआ है। ऐसे में 3 इंजेक्शन लगते हैं। पहला इंजेक्शन कुत्ते के काटने के बाद उसी दिन 24 घण्टे के अंदर लगता है जिसदिन कुत्ते ने काटा हो। दूसरा इंजेक्शन तीसरे दिन लगता है। और तीसरा इंजेक्शन कुत्ते के काटने के 7 दिन बाद लगता है। ( प्री एक्सपोजर टीकाकरण) पोस्ट एक्सपोजर वैक्सीनेशन– इसमें टीके की 5 खुराक लगती हैं। तीसरी खुराक प्री एक्सपोजर वैक्सीनेशन के समान हैं । चौथी खुराक़ चौदवे दिन लगती है और पांचवीं खुराक 21 या 28 दिन पर लगती है। जब रेबीज़ का पहला इंजेक्शन लगता है उसी के साथ टेटनस का इंजेक्शन भी लगाया जाता है। इसका कारण यह है कि टेटनस किसी भी संक्रमित घाव से हो सकता है। जब कुत्ता काटता या खरोचता है जो घाव होता है और वह घाव कुत्ते की लार या उसके पंजों से संक्रमित होता है। यही कारण है की आपको रेबीज़ के साथ टेटनस का इंजेक्शन भी पहले दिन लगता है। अंततः आपको ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कुत्ते के काटने पर टीका ज़रूर लगवाना चाहिए भले ही आपके पालतू कुत्ते ने आपको काटा हो। ऐसा करने पर आप खुद को बीमारियो से बचा सकते हैं। यदि आपके आस पास के लोग इस बात से जागरूक नहीं हैं की कुत्ते के काटने पर इंजेक्शन लगवाना चाहिए तो आपको इंसानियत के नाते उनको भी जागरूक करना चाहिए और उनका टीकाकरण करवाना चाहिए।
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    अधिकतर महिलाओं को पीरियड्स के दिनों में पेट के निचले भाग में पीड़ा अनुभव होती है, जिसे पीरियड क्रैम्प्स भी कहा जाता है। ये पीड़ा कभी कभी हल्की अथवा कभी कभी असेहनीय होती है, ऐसी महिलाएं पीड़ा को कम करने के लिए हर भरसक प्रयास करती है। इस पीड़ा से निजात पाने के लिए आप अदरक का भी प्रसोग कर सकते है। आइए जानें क्यों और कैसे? _पीरियड्स में पेट के निचले हिस्से में दर्द क्यों होता हैं?_ पीरियड्स के दौरान एक प्रोस्टाग्लैंडिन नामक स्राव स्रावित होता है, जिससे बच्चेदानी ( यूटरस) की मांसपेशियों सिकुड़ती है ( कॉन्ट्रैक्ट) करती है। इसके परिणाम स्वरूप सूजन और दर्द होता है। कभी कभी यह दर्द फैल कर पीठ के निचली भाग में भी होने लगता है और पेट फूलना, सिर दर्द, उपकाई, उल्टी और कभी कभी अतिसार ( डायरिया) भी हो जाता है। _प्रेगनेंसी में अदरक के फायदे_ अदरक में जिंजरऑल नामक पदार्थ होता है जो एंटीइंफ्लेमेटरी एवं एंटीओक्सीडेंट गुण युक्त होता है। यह पीरियड्स में दर्द से राहत दिला कर ऊर्जा भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त यदि आपके पीरियड्स इरेगुलर है तो भी आप अदरक को अपने खाने पीने में शामिल कर सकती हैं। _अदरक को कितनी मात्रा में सेवन करना चाहिए?_ यदि आप अदरक का सेवन करते हैं तो ध्यान रखें की अदरक का सेवन दिन भर में 25 ग्राम से अधिक न हों। हर चीज अधिकांश मात्रा में हानिकारक होती है और अधिक मात्रा में अदरक का सेवन करने से बवासीर ( पाइल्स) की परेशानी हो सकती है। _अदरक का सेवन किस प्रकार से किया जा सकता है?_ अदरक का सेवन आप निम्न रूप में कर सकते हैं – - अदरक की चाय - अदरक को पानी में उबाल कर पिए - अदरक का रस निचोड़ कर थोड़े से पानी में मिला कर पी सकते है। - इसके अतिरिक्त अदरक के रस को आप मधु में भी मिला कर पी सकते है। परंतु मधु का सेवन कभी भी उबाल कर न करें।
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    शराब का सेवन करना कभी भी सेहत के लिए अच्छा नहीं माना गया है। अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से आपके शरीर पर बुरा असर पड़ता है तथा आप किसी न किसी प्रकार के रोग से भी ग्रस्त हो सकती हैं। वहीं पीरियड्स के दिनों में भी बहुत अधिक मात्रा में शराब पीने से बुरा असर पड़ता है। आइए जानते है शराब पीने से किन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है – - पीरियड्स के दौरान शराब पीने से आपको निर्जलीयकारण ( डिहाइड्रेशन) की समस्या हो सकती है। इसी कारण से आपके पेट में मरोड़ भी और बढ़ सकती है। - शराब पीने से हार्मोन्स पर असर पड़ता है। शराब के सेवन से एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरॉन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शराब का सेवन करने से इन दोनो हार्मोन्स का स्तर कुछ देर के लिए बढ़ जाता है। परिणाम स्वरूप यह आपकी मेंस्ट्रुअल साइकिल ( मासिक धर्म चक्र) को प्रभावित करता है। - इसके अतिरिक्त शराब का सेवन करने आपको थकान और सुस्ती भी अधिक मेहसूस होगी जो कि आपका मूड खराब होने का कारण बन सकती है। आपको अधिक चिड़चिड़ाहट मेहसूस हो सकती है। अर्थात शराब पीने से पीएमएस ( प्री मेंसट्रूअल सिंड्रोम) के लक्षण बिगड़ सकते हैं। - शराब का सेवन करने से आपके शरीर में उपास्थिक पोषक पदार्थ जैसे मैंगनेशियम आदि पर भी असर पड़ता है। शराब का सेवन करने से मैंगनेशियम का स्तर कम हो सकता है जिसके फलस्वरूप आपकी ब्लड शुगर भी कम हो सकती है। इससे आपको चक्कर, कमजोरी आदि मेहसूस होगी। - शराब अन्य अंगो जैसे लीवर आदि को भी नुकसान पहुंचाती है। इस कारण से आपके पूरे शरीर की क्रिया उचित ढंग से नहीं हो पाती है एवं यह हार्मोस पर प्रभाव डालती है। इस कारण से आपको मासिक धर्म चक्र में परेशानियां आ सकती है। _निष्कर्ष क्या है?_ उपर्युक्त लेख से आप यह स्वतः समझ गए होने की पीरियड्स के दौरान शराब का सेवन करना सही नहीं है। इसीलिए पीरियड्स के दौरान शराब का सेवन कदापि न करें। शराब का सेवन करने से आपके मासिक धर्म चक्र पर प्रभाव पड़ सकता है जिससे आपको पीरियड्स की अनियमितता की परेशानी का भी सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त शराब का सेवन करने से तनाव और अवसाद जैसी मानसिक उलझने भी जन्म लेती हैं और यह भी आपके मासिक धर्म चक्र को प्रभावित करती हैं।
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    गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को वो हर चीज खानी चाहिए जो पोषक तत्वों से भरपूर हों। इन पोषक चीजों में अनार भी आता है तो शरीर को हाइड्रेट करने के साथ और भी अन्य चीज़े उपलब्ध कराता है। **अनार के पोषक तत्व** अनार कैल्शियम, फोलेट, आयरन, प्रोटीन, पोटेशियम, विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट के साथ साथ फाइबर से भी भरपूर होता है। **प्रेग्नेसी में अनार खाने के फायदे** प्रेग्नेसी में अनार निम्न सहायता करता है - - अनार रक्त को तो साफ करता ही है इसके अतिरिक्त वह यूरिनरी संक्रमण की समस्या को भी नहीं होने देता। - अनार रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है। - अनार प्रेगनेंसी में होने वाली मलती और लगातार हो रही उल्टी को भी कम करता है। - कैल्शियम होने के कारण हड्डियों को मजबूती देता है। - फाइबर से भरपूर होने के कारण कब्ज नहीं होने देता एवं पाचन की अन्य समस्या जैसे एसिडिटी आदि को भी दूर करता है। - अनार विटामिन सी का अच्छा स्रोत होता है। विटामिन सी हमारे शरीर में आयरन को सोखने में सहायक होता है। और जब शरीर में उचित विटामिन सी और आयरन होता है तो इससे आयरन डिफिशिएंसी एनीमिया होने का खतरा भी कम हो जाता है। - इसमें उपस्थिति पोटेशियम गर्भावस्था में होने वाली पैरो की ऐंठन में भी राहत देता है। - प्रेगनेंसी में फोलेट अति आवश्यक होता है। यह भ्रुण के तंत्रिका तंत्र और न्यूरल ट्यूब का निर्माण करने से शिशु के मस्तिष्क का विकास सही तरीके से कराता है। प्रतिदिन एक गिलास अनार जा जूस फोलेट की आवश्यकता को 10 फीसदी तक पूरा करता है। **कितना अनार खाए?** हालाकि गर्भवति महिलाओं के लिए कोई मात्रा निर्धारित नहीं की गई है परंतु आपको एक व्यस्क की मात्रा से कुछ कम अनार का सेवन करना चाहिए। एक व्यस्क 56gm से 226gm तक की मात्रा में रोज अनार का सेवन कर सकता है। अनार को दिन में ही खाए रात में इसका सेवन न करें। **क्या अनार खाने का कोई नुकसान भी है?** अनार खाने से बहुत चिंताजनक नुकसान नहीं होते परंतु सावधानी से इसका सेवन करे। - अधिक मात्रा में सेवन करने से अनार आपका वजन बढ़ा सकता है क्यूंकि इस फल में अधिक कैलोरी होती है। - अनार का जूस कुछ दवाओं पर असर कर सकता है। अतः इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से राय लें। - अनार के अर्क का या सप्लीमेंट्स का सेवन गर्भावस्था में नही करना चाहिए। क्योंकि इसके ऊपर अभी कोई भी वैज्ञानिक खोज प्राप्त नहीं हुई है। - हर चीज बहुत अधिक मात्रा में हानिकारक हो सकती है चाहें वह कुछ भी हो। बहुत अधिक अनार का सेवन करने से आपके दातों का एनामेल भी खराब हो सकता है।
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    बच्चे हर मां बाप की जान होते हैं ऐसे में यदि बच्चों को बुखार आ जाए तो मां बाप चिकत्सक के पास घबराए हुए दौड़े चले आते हैं। परंतु आपको बता दे बुखार एक रोग नहीं है यह एक परेशानी है जिसका मुख्य कारण जानकर उसका हल निकालना चाहिए। यदि छोटा बच्चा आपके घर में है तो आपको एक थर्मोमीटर अवश्य रखना चाहिए। जब बुखार आता है तो शरीर का तापमान **37. 5° C या 99.5 °F** से अधिक हो जाता है। **बच्चों को बुखार में होने वाले लक्षण** यदि बच्चा बुखार से पीड़ित होता है तो निम्न लक्षण मिलते है - - कपकपी आना - सिर, पेट दर्द - खांसी - नाक का बहना - भूख कम लगना - मिचली या उल्टी आना **बच्चों में बुखार आने का कारण** कई बार बुखार किस कारण से है ये नही पता चल पाता है परन्तु बुखार तभी होता है जब शरीर में कोई न कोई इन्फेक्शन हुआ हो। बुखार आने के कुछ कारण ये हो सकते हैं - - शिशुओ और बच्चों में कान का संक्रामण होना। - श्वासन पथ का संक्रमण होना। - गलतुंडिका में सूजन होना अर्थात टॉन्सिलाइटिस होना। - पेट या मूत्रमार्ग में संक्रमण होना। - मच्छर जनित रोग होना जैसे मलेरिया, डेंगू आदि। - अक्सर बच्चों के दांत निकलने पर भी बुखार आता है। **कैसे जानें कि शिशु को बुखार है?** यदि आपको अपने शिशु में उपर्युक्त कुछ लक्षण दिखते हैं या आपको ऐसा लग रहा है की आपके शिशु को ज्वार अर्थात बुखार हो सकता है तो आपको **थर्मामीटर** के द्वारा बुखार कितना है ये पता लगना चाहिए। बिना बुखार के **बस माथा चू लेने के कई बार बुखार होते हुए भी ज्ञात नही हो सकता**और यदि हो भी जाता है तो आप उसका सही माप नहीं जान सकते। इसलिए अपने शिशु का बुखार जानने हेतु थर्मामीटर का प्रयोग करना अनिवार्य है। **थर्मामीटर का इस्तेमाल कैसे करें?** थर्मामीटर भी बाजार में 2 प्रकार का उपल्ब्ध है– 1. मर्करी (पारा) थर्मामीटर 2. डिजिटल थर्मामीटर <u>डिजिटल थर्मामीटर प्रयोग करने की विधि</u> - सर्वप्रथम आपको डिजिटल थर्मामीटर का बटन दबाकर उसे ओन करना है। - इसके बाद यदि आपका बच्चा बहुत ही छोटा है तो थर्मोमीटर को अपने बच्चे की कांख (अर्थात बगल) में और यदि थोड़ा बड़ा (3 साल से ज्यादा उम्र) है तो उसके जीभ के निचले हिस्से में पीछे की तरफ स्थिर करना है। कांख में लगाने के बाद हाथ को नीचे करदे या अगर जीभ में लगा तो रहे तो बच्चे को अपने होठों को बंद करने को बोलें । - कुछ मिनटों में डिजिटल थर्मामीटर से एक बीप की आवाज आएगी तत्पश्चात थर्मामीटर को निकाल लें और उसपर आया हुआ तापमान लिख लें। - थर्मामीटर को तापमान लेने के बाद बिना धुले कभी भी न रखें। हमेशा पानी से धूल कर रखें। <u>मर्करी (पारा) थर्मामीटर प्रयोग करने की विधि</u> - सर्वप्रथम आपको थर्मामीटर पानी (ठंडा या सामान्य ताप) या साबुन से धो लेना है। - तापमान कम करने के लिए थर्मामीटर को हिलाएं। तापमान मापने के बाद ग्लास थर्मामीटर हमेशा खुद को रीसेट नहीं करते हैं। इसे सिरे से दूर अंत में पकड़ें और थर्मामीटर को आगे-पीछे घुमाएँ। यह सुनिश्चित करने के लिए जांचें कि यह कम से कम 96.8 डिग्री फ़ारेनहाइट (36.0 डिग्री सेल्सियस) से नीचे चला जाए। - इसके बाद यदि आपका बच्चा बहुत ही छोटा है तो थर्मोमीटर को अपने बच्चे की कांख (अर्थात बगल) में और यदि थोड़ा बड़ा (3 साल से ज्यादा उम्र) है तो उसके जीभ के निचले हिस्से में पीछे की तरफ स्थिर करना है। कांख में लगाने के बाद हाथ को नीचे करदे या अगर जीभ में लगा तो रहे तो बच्चे को अपने होठों को बंद करने को बोलें । - थर्मामीटर को 2-4 मिनट के लिए उसी स्थान पर छोड़ दें। - तापमान पढ़ने के लिए थर्मामीटर को क्षैतिज रूप (आड़ा/हॉरिजॉन्टल ) से पकड़ें। इसे आंखों के स्तर तक लाएं और तरल का सिरा ठीक आपके सामने हो। लंबी रेखाएँ देखें, जो प्रत्येक 1 °F (या 1 °C) दर्शाती हैं और छोटी रेखाएँ, जो प्रत्येक 0.2 °F (या 0.1 °C) दर्शाती हैं। तरल के अंत तक निकटतम संख्या पढ़ें, यदि आवश्यक हो तो छोटी रेखाओं को गिनें। **बुखार के दौरान बच्चे को क्या खिलाएं??** यदि आपका बच्चा केवल स्तन्य पान करता है तो बुखार आने पर भी उसको माँ का दुग्ध पिलाती रहे जबतक आप कोई गंभीर बीमारी से रोगग्रसित नहीं है। आमतौर पर बुखार आने पर लघु और सुपाच्य भोजन देना चाहिए। बुखार के समय चीज, पनीर, बाहर का खाना, फास्ट फूड, अधिक तैलीय पदार्थ आदि न दें। बेहतर रहेगा बुखार आने पर आप अपने बच्चे को घर का बना लघु खाना दें। बच्चों को बुखार के समय आप हरी सब्जियों, टमाटर और हरी सब्जियों से निर्मित सूप, खिचड़ी, दाल का पानी, गुनगुना दुग्ध, उबला आलू इत्यादि दे सकते हैं। **बुखार कम करने के कुछ घरेलू उपचार** यदि आप अपने शिशु का बुखार घर पर कम करना चाहते है तो उसके लिए कुछ घरेलू उपचार कर सकते है। – - नींबू और शहद को 1-1 बड़ा चम्मच ले और अच्छे से मिलाएं। फिर इसको बच्चे को खाने के लिए दे। - अपने बच्चे की मालिश सरसों के तेल और लहसुन से करें। परंतु यदि आपके शिशु को दाने है, चक्काते है तो इसका प्रगोग न करें। इसके अतिरिक्त कुछ बच्चो को लहसुन से अलर्जी भी हो सकती है। इसीलिए इसका प्रयोग सावधानी से करें। - यदि बुखार के कारण आपके बच्चे का शरीर, माथा अत्याधिक तप रहा है तो आप ठंडे सेक का माथे और गर्दन पर प्रयोग कर सकते हैं। - ध्यान रहें उपर्युक्त केवल उपाय है इलाज नहीं। बिना जाने समझे कोई भी घरेलू नुस्खा अपने बच्चो पर न आजमाए क्योंकि **कई बार घरेलु नुस्खे बीमारी को जटिल बना सकते हैं।** **बुखार आने पर अपने बच्चे में निम्न बिंदिओ का ध्यान रखें –** - पानी की कमी न होने दे। - ठंड से बचाएं - धुएं से दूर रखे - हल्के आरामदायक वस्त्र पहनाए - बुखार आने पर घर पर अपने बच्चे का बुखार थर्मोमीटर से लें। बच्चे के बुखार को माप कर एक जगह लिखते जाएं। ऐसा करने से आपको पता चलता रहेगा की आपके बच्चे का बुखार कितना काम हुआ है और चिकत्सक को भी दवाई कितनी असर कर रही है, बुखार आने का क्या कारण है ये जाने में सहायता मिलती है।
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